उम्मुल-मोमिनीन
सैयिदा ज़ैनब बिन्ते जहश रज़ियल्लाहु अन्हा
{HINDI}
HAZRAT ZAINAB(r.a)
उम्मुल-मोमिनीन ज़ैनब बिन्ते जहश रज़ियल्लाहु
अन्हा
ज़ैनब बिन्ते जहश रज़ियल्लाहु अन्हा कुरैश के ऊँचे खानदान की
महिला थीं, इस्लाम ने उनकी आत्मा को शुद्ध कर दिया था, और उनके हृदय को अपने प्रकाश
और चमक से रोशन कर दिया था, और उन्हें धर्मनिष्ठा व ईश्भय और शिष्टाचार से सुसज्जित
कर दिया था। इसके कारण वह छुपी हुई बहुमूल्य और अनूठी मोतियों में से एक मोती हो गईं।
वह संयम, ईश्भय, उदारता और दान करने में दुनिया की महिलाओं की नायिकाओं में से एक
नायिका समझी जाती हैं, तथा वह पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से शादी की वजह से विश्वासियों
की एक माँ बन गईं, और जिस बात ने उनकी प्रतिष्ठा और मान-सम्मान को बढ़ा दिया और इतिहासकारों
के यहाँ ज़माने भर के लिए उनके चर्चे को आम कर दिया, वह उनकी शादी की कहानी का पवित्र
क़ुर्आन में उल्लेख है, और उन्हीं की वजह से हिजाब की आयत उतरी, जिसने इबादतगाहों
में उनके स्थान को ऊँचा कर दिया और उनके पद को बुलंद कर दिया। वह अल्लाह को बहुत याद करनेवाली और सहनशील थीं, वह दिन में रोज़ा
रखती थीं और रात में नमाज़ पढ़ती थीं, वह एक उदार व दानशील हाथ की मालिक थीं, उनके
पास जो कुछ भी होता उसे दान कर देती थीं उसमें कंजूसी से काम नहीं लेती थीं, तथा गरीबों
और ज़रूरतमंदों की सहायता करने से कभी पीछे नहीं हटती थीं, यहाँ तक कि वह
दानशीलता, उदारता और शिष्टाचार का एक बड़ा उदाहरण बन गईं, उनकी उदारता के कारण उनको
कई उपाधियाँ मिलीं, जैसे : “उम्मुल-मसाकीन” (अर्थात् गरीबों की माँ), और “मफज़उल-ऐताम” (अर्थात् अनाथों का सहारा) और “मलजउल-अरामिल” (अर्थात् विधवाओं का परिश्रय)। वास्तव में वह अच्छे कामों में बहुत आगे
रहनेवाली महिला थीं, हमारे इस्लामी इतिहास में उनकी एक सुगंधित जीवन चरित्र है, इस
प्रकार ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा की जीवनी प्रत्येक मुस्लिम महिला के लिए एक महान उदाहरण
है, जिसे उनके ऊँचे शिष्टाचार और नीति का अनुकरण करना चाहिए, उनके तरीके और रास्ते
पर चलना चाहिए, ताकि इसके कारणवश उसे अल्लाह सर्वशक्तिमान की प्रसन्नता और उसके पैगंबर
सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की प्रसन्नता प्राप्त हो।
उनका नाम और वंशः
उनका नाम व नसब इस तरह है : ज़ैनब बिन्ते जह़श बिन रियाब बिन
यामुर बिन मुर्रह बिन कसीर बिन गुन्म बिन दौरान बिन असद बिन खुज़ैमा, और उनकी
कुन्नियत “उम्मुल-हकम” है। उनके मामुओं में हम्ज़ा बिन अब्दुल मुत्तलिब
हैं, जिन्हें उहुद की लड़ाई में “असदुल्लाह” (यानी अल्लाह का
शेर) और “सैयिदुश-शुहदा” (यानी शहीदों का सरदार) का खिताब (उपाधि) मिला,
इसी तरह उनके मामुओं में अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब भी हैं, जो मुसीबतों के समय में
अपना धन खर्च करने और दान करने में बहुत मश्हूर थे, और उनकी मौसी (ख़ाला) पैगंबर
सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के ह़वारी ज़ुबैर बिन अव्वाम अल-असदी की माँ सफिय्या बिन्ते
अब्दुल मुत्तलिब हाशिमी थीं, और उनके दो भाई थे : उनमें से एक अब्द बिन जहश अल-असदी
हैं जिनके लिए इस्लाम में सब से पहला झंडा बाँधा गया था और वह शहीदों में शामिल थे,
और दूसरे भाई अबू अहमद अब्द बिन जहश अल-आमा थे, जो पहले पहल इस्लाम लानेवालों में से
और मदीना की ओर हिज्रत करनेवालों में से थे। और उनकी दो बहनें थीं : उमैमा बिन्ते अब्दुल
मुत्तलिब जो पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की फूफी थीं, और दूसरी बहन हम्ना बिन्ते
जहश, जो पहले पहल ईमान लानेवालों में शामिल थीं। “सैयिदा ज़ैनब - रज़ियल्लाहु अन्हा - हिज्रत से तीस साल पहले मक्का
मुकर्रमा में पैदा हुई थीं”, और यह भी कहा गया है किः “वह हिज्रत से १७ साल
पहले पैदा हुई थीं।”
ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा का पालन पोषण, प्रतिष्ठा और हसब व
नसब (कुलीन वंश) वाले घराने में हुआ था, उन्हें अपने वंश का एहसास था, और अपने परिवार की
प्रतिष्ठा पर उन्हें गर्व भी था, वह एक बार बोलीं : मैं अब्द शम्स के बेटों की सरदार
हूँ।
उनका इस्लाम स्वीकार करनाः
ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा उन महिलाओं में शामिल थीं जिन्हों
ने इस्लाम में प्रवेश करने में शीघ्रता की, वह अपने सीने में एक शुद्ध (साफ सुथरा)
और अल्लाह व रसूल के लिए मुख़्लिस (निःस्वार्थ) दिल रखती थीं, अतएव उन्हों ने अपने
इस्लाम में भी इख़्लास (निःस्वार्थता) का प्रदर्शन किया, वह अपने धर्म में पक्की और
सच्ची थीं, उन्हों ने कुरैश की यातना और उत्पीड़न को सहन किया यहाँ तक कि अपने
हिज्रत करने वाले भाईयों के साथ मदीना की
तरफ हिज्रत की, अनसार ने उन लोगों का सम्मान किया, अपने घरों को उनके साथ साझा
किया और अपना आधा धन और घर उन्हें प्रदान कर दिया।
उनके शिष्टाचार और सत्यकर्मः
उम्मुल मोमिनीन सैयिदा ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा एक महान व
सर्वोच्च पद से उत्कृष्ट थीं, खासकर जब वह पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पत्नी
और विश्वासियों की माँ बन गईं। वह एक अधिक से अधिक नमाज़ पढ़नेवाली और रोज़ा रखनेवाली पुनीत महिला थीं, उनके पास जो कुछ भी होता था उसे ग़रीबों,
ज़रूरतमंदों और दरिद्रों पर दान कर देती थीं, वह दस्तकारी करतीं, खाल (चमड़े)
पकातीं और सिलाई करतीं और जो कुछ बनाती थीं उसे बेच देतीं और उस से मिलने वाले पैसों
को दान कर देती थीं, वह एक ईमानदार, संयमी और रिश्तेदारों के साथ सद्व्यवहार करने
वाली विश्वासी महिला थीं।
ज़ैनब बिन्ते जहश रज़ियल्लाहु अन्हा की उदारता और उनका दिल खोल
कर खर्च करनाः
हमें कई ऐसे उदाहरण मिलते हैं जो ज़ैनब बिन्ते जहश रज़ियल्लाहु
अन्हा के व्यापक अनुदान के साक्षी हैं, और उनकी उदारता और दानशीलता की पुष्टि करते
हैं, जो वह गरीबों पर बिना किसा सीमा के खर्च करती थीं, इस विषय में बुखारी और मुस्लिम
ने उल्लेख किया है – और यहाँ पर इमाम मुस्लिम के शब्द उल्लिखित हैं – कि आयशा रज़ियल्लाहु
अन्हा से वर्णित है, वह कहती हैं कि : पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया:
“तुम में सब से पहले
(मेरे निधन के बाद) मुझ से मिलने वाली वह होगी, जो तुम्हारे बीच सबसे लंबे हाथों वाली
है।” वह कहती हैं, इसके बाद पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की
पवित्र पत्नियाँ आपस में एक दूसरे के हाथों को नाप कर देखती थीं और फिर तुलना करती
थीं कि सब से लंबे हाथ किसके हैं, वह कहती हैं, और हम में सबसे लंबे हाथ ज़ैनब के ही
थे, क्योंकि वह अपने हाथ से काम करती थीं और उसे दान कर देती थीं।
और एक दूसरी रिवायत में है, आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा कहती हैं
: पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के निधन के बाद जब हम किसी के घर में जमा होते थे
तो दीवार की ओर हम अपने अपने हाथों को लंबा करके देखते थे कि सबसे लंबा हाथ किसका है
l हम इस तरह करके देखते रहे यहाँ तक कि ज़ैनब बिन्ते
जहश रज़ियल्लाहु अन्हा का निधन हो गया, वह एक छोटे कद की औरत थीं, वह हम में सब से
लंबी तो नहीं थीं। तो हमें उस समय पता चला कि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का मतलब सदक़ा व खैरात में
लंबे हाथ से था, और ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा दस्तकारी में माहिर महिला थीं, वह खाल
पकातीं और सिलाई करती थीं और जो कुछ कमाती थीं उसे अल्लाह के रास्ते में दान कर देती
थीं।
आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा कहती हैं : ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा
सूत कातती थीं, और उसे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के फौजी दस्तों को देती थीं,
जिससे वे सिलाई करते और अपनी जंगों में उससे मदद लेते थे।
उनकी उदारता और दानशीलता का एक अन्य उदाहरण वह है जिसे बर्ज़ा
बिन्ते राफेअ ने उल्लेख किया है, वह कहती हैं : जब सरकारी वेतन जारी हुआ, तो उमर रज़ियल्लाहु
अन्हु ने ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा के पास उनका हिस्सा भिजवाया, जब वह उनके पास लाया
गया तो वह बोलीं : अल्लाह उमर बिन खत्ताब को क्षमा करे, मेरी दूसरी बहनें इसको बाँटने
पर मुझसे अधिक शक्तिशाली थीं, तो लोगों ने कहा : यह सब आपके लिए है, तो उन्हों ने
कहाः “सुबहानल्लाह” (अल्लाह की पवित्रता है) और वह उससे एक कपड़े से पर्दा करके बोलीं,
उसे उंडेल दो औक उसके ऊपर एक कपड़ा डाल दो, फिर मुझसे बोलीं : उसमें अपने दोनों हाथों
को डालो और भर कर ले लो और उसे ले जाकर इनको और इनको, जो उनके रिश्तेदारों में से
थे और उनके पास अनाथ थे, दे दो। इस तरह उन्होंने उसे वहीँ बाँट दिया यहाँ तक कि उस
में से कुछ कपड़े के नीचे बाक़ी बचा, तो बर्जा ने उनसे कहा : हे मोमिनों की माँ ! अल्लाह
आपको माफ करे, अल्लाह की क़सम, इस धन में हमारा भी कुछ हक़ होता था, तो ज़ैनब रज़ियल्लाहु
अन्हा ने कहाः अब जो कुछ कपड़े के नीचे है वह तुम्हारा है, तो हमें उस कपड़े के
नीचे ५८० दिर्हम मिले, इसके बाद उन्हों ने अपने हाथ को आकाश की ओर उठाकर यह दुआ की
: ऐ अल्लाह, इस साल के बाद उमर का अनुदान मुझे न पहुंचे।
आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से वर्णित है, वह कहती हैं : ज़ैनब बिन्ते
जहश पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के निकट स्थान और दर्जे में मुझसे मुक़ाबला करती
थीं, मैं ने धर्म के मामले (धर्मनिष्ठा) में ज़ैनब से बढ़कर अच्छी औरत किसी को नहीं
देखा, सबसे अधिक अल्लाह से डरने वाली, सबसे अधिक सच बोलने वाली, सबसे अधिक
रिश्तेदारी को निभाने वाली और सबसे अधिक दान करने वाली, अल्लाह उनसे खुश हो।”
अब्दुल्ला बिन श्द्दाद से वर्णित है कि पैगंबर सल्लल्लाहु
अलैहि व सल्लम ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से कहा : “निःसंदेह ज़ैनब बिन्ते
जहश “अव्वाहा” (अर्थात अल्लाह के सामने विनम्रता करने वाली) हैं,
इस पर आपसे पूछा गया : “अव्वाहा” का मतलब क्या हैॽ तो आप ने फरमाया
: (अल्लाह के सामने) बहुत रोने-धोने वाली विनम्रता और विनीतता करने वाली” जैसा कि क़ुर्आन
में इब्राहीम अलैहिस्सलाम के विषय में आया है :
﴿إن ابراهيم لحليم أواه منيب﴾
“निःसंदेह इब्राहीम
बड़े ही सहनशील, विनम्र, हमारी ओर पलटनेवाले थे।”
आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने उनके विषय में फरमाया : “निःसंदेह श्लाघनीय
शिष्टाचार वाली, इबादत गुज़ार और अनाथों तथा विधवाओं का सहारा दुनिया से चल बसीं।”
तथा इब्ने सअद ने कहा : ज़ैनब बिन्ते जहश रज़ियल्लाहु अन्हा
ने दीनार छोड़ा न दिर्हम, बल्कि उनके पास जो कुछ भी होता था उसे दान कर देती थीं, वह
बेसहारों का सहारा थीं।”
ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा और हदीस की रिवायतः
सैयिदा ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा उन महिलाओं में शामिल थीं जिन्होंने
पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हदीसें याद कीं थीं और उनसे हदीसें रिवायत की
गईं।
ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा ने ११ हदीसें रिवायत की हैं, जिनमें
से दो हदीसों पर बुखारी और मुस्लिम सहमत हैं। उनसे कई सहाबा ने हदीसें रिवायत की
हैं, उनमें से : उनके भतीजे मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह बिन जहश, और क़ासिम बिन मुहम्मद
बिन अबू-बक्र, और उनके आज़ाद किये हुए गुलाम मज़्कूर हैं। तथा बहुत सी सहाबियात (महिलाओं)
ने भी उनसे हदीस रिवायत की है जिनमें से कुछ के नाम इस तरह हैं : ज़ैनब बिन्ते अबू
सलमा और उनकी माँ उम्मुल मोमिनीन उम्मे सलमा, उम्मुल मोमिनीन रमला
बिन्ते अबू सुफ़यान जिनको उम्मे हबीबा भी कहा जाता है, और उम्मे कुलसूम बिन्ते मुस्तलिक़।
उनसे वर्णित हदीसों में से एक यह है, ज़ैनब रज़ियल्लाहु
अन्हा कहती हैं, मैं पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पत्नी उम्मे हबीबा के पास
आई, जब उनके पिता अबू सुफ़यान बिन हर्ब का निधन हुआ था, तो उम्मे हबीबा ने खलूक़
नामी या कोई अन्य खुशबू मंगाई जिसमें पीलीपन था, और एक लड़की को उसमें से लगाईं और
फिर अपने गालों पर मल लीं, और बोलीं, अल्लाह की क़सम मुझे खुश्बू की कोई ज़रूरत नहीं
हैं, लेकिन मैं पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फरमाते हुए सुनी हूँ कि : “जो महिला अल्लाह और
आखिरत के दिन पर विश्वास रखती है, उसके लिए यह जायज़ नहीं है कि किसी मृतक पर तीन रात
से अधिक शोक करे, सिवाय पति के जिस पर चार महीने दस दिन शोक करेगी।” यह हदीस उम्मे
हबीबा रमला बिन्ते अबू-सुफ़यान से कथित है और सही है, इसे बुखारी ने उल्लेख किया है,
देखिएः अल-जामिउस्सहीह, हदीस नंबरः ५३३४.
तथा बुखारी द्वारा वर्णित दूसरी हदीस यह है किः उम्मे हबीबा
बिन्ते अबू सुफयान ने ज़ैनब बिन्ते जह्श से रिवायत किया कि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक बार उनके पास
घबराए हुए आए और कह रहे थे : “अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं, अरबों के लिए खराबी
है उस बुराई से जो नज़दीक आ चुकी है, याजूज और माजूज के बाँध में से इतना खुल चुका
है”, और आप ने शहादत की उंगली और अंगूठे से एक गोल घेरा बनाया।
ज़ैनब बिन्ते जहश कहती हैं, इस पर मैं ने पूछाः ऐ अल्लाह के ईशदूत ! क्या हम नष्ट कर
दिए जायेंगे जबकि हमारे बीच नेक लोग उपस्थिति हैंॽ तो आप ने फरमाया
: हाँ, जब बुराई अधिक हो जायेगी।”
यह हदीस ज़ैनब बिन्ते जहश से कथित है और सही है, इसे बुखारी
ने उल्लेख किया है, देखिएः अल-जामिउस्सहीह, हदीस नंबरः ३३४६.
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