उम्मुल-मोमिनीन सैयिदा आयशा बिन्त
सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हुमा
{HINDI}
( HAZRAT AYESHA ( R.A
उम्मुल
मोमिनीन सैयिदा आयशा बिन्त सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हुमा
आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा एक उज्ज्वल बुद्धि, तीव्र प्रतिभा और बहुल ज्ञान से
सुसज्जित थीं, उनका पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हदीसों के वर्णन और
आपके जीवन के बहुत सारे पहलुओं की व्याख्या करने और अपनी इज्तिहादों के माध्यम से इस्लामी
सोच की सेवा करने में सक्रिय योगदान रहा है।
इसी तरह वह ऐसी महिला हैं जो एक औरत के
रूप में अपनी भूमिका की सीमाओं को पार कर पूरी एक उम्मत अर्थात इस्लामी उम्मत का शिक्षक
बन गईं।
वह क़ुरआन, हदीस और फिक़्ह (इस्लामी धर्मशास्त्र) में सब से निपुण
(माहिर)
थीं। उनके बारे में उर्वह बिन जुबैर का कहना है : “मैंने क़ुरआन और
फराइज़ (यानी मृतक की संपत्ति को उनके परिजनों के बीच बांटने का विज्ञान), हलाल व
हराम, अरबी कविता और साहित्य और अरबों की वंशावली की जानकारी में आयशा
रज़ियल्लाहु अन्हा से बढ़ कर किसी को नहीं देखा।”
इस अनुसंधान बिंदु में मैं ने तीन क्षेत्रों का उल्लेख किया
है जिन में आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा उत्कृष्ट थीं और वे यह हैं:
१- उनका ज्ञान और शिक्षण.
२- एक भाष्यकार और हदीस की वक्ता महिला.
३- इस्लामी धर्मशास्त्र में निपुण महिला.
मैं ने इन तीनों क्षेत्रों को इसलिए चुना
है क्योंकि समाज और इस्लामी सोच में उनका महत्व और स्पष्ट प्रभाव है। आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने अपने ज्ञान और
समझ बूझ के द्वारा अवधारणाओं के शुद्धिकरण और पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नतों
के पालन के लिए मार्गदर्शन करने में बड़ा योगदान किया है। चुनांचे ज्ञान के इच्छुक दूर दूर से उनके
बहुल ज्ञान से लाभान्वित होने के लिए उनके पास आया करते थे, जिससे वह एक प्रकाशमान दीपक के समान होगईं
जो ज्ञान के इच्छुकों और ज्ञानियों पर प्रकाश करता है। जी हाँ, वह अबू बक्र
सिद्दीक अब्दुल्लाह बिन उसमान की पुत्री, पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पत्नी
आयशा हैं, जो मुसलमानों की महिलाओं में सबसे अधिक धर्म की समझ रखने वाली और क़ुरआन व हदीस और धर्मशास्त्र की सब से अधिक जानकार
थीं। वह मक्का मुकर्रमा में हिज्रत से आठ वर्ष पहले पैदा हुई थीं, और हिज्रत के दूसरे वर्ष पैगंबर
सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनसे विवाह किया। वह पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम
की पवित्र पत्नियों के बीच उनकी हदीसों को सब से अधिक रिवायत करने वाली थीं।
वह पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सबसे
प्रिय पत्नियों में से थीं, वह इस बारे में कहती हैं : “मुझे पैगंबर
सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पत्नियों पर दस चीज़ों के द्वारा प्राथमिकता प्राप्त
है और इस पर कोई गर्व नहीं है : मैं पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पत्नियों में
उनको सब से अधिक प्रिय थी, और मेरे पिता उनको सबसे अधिक प्रिय थे, आप ने मुझसे सात साल की आयु में शादी की
और नौ साल की आयु में मेरी रुख्सती की, और मेरी बेगुनाही का सबूत आसमान से उतरा,
तथा पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी अंतिम बीमारी में अपनी सारी पत्नियों
से अनुमति लेते हुए फरमायाः मैं अब तुम सब के पास आने की ताक़त नहीं रखता, अतः तुम
लोग मुझे किसी एक के पास रहने की अनुमति दे दो, इस पर उम्मे सलमा बोलीं किः हम जान गए
कि आप किसके पास रहना चाहते हैं, आप का मलब आयशा से है, हम सब ने आपको अनुमति दे दी,
और इस दुनिया से आपका आखिरी तोशा मेरी राल थी, क्योंकि आप ने मेरा मिस्वाक किया, और
मेरी गोद और मेरे सीने के बीच आपका निधन हुआ, और आप मेरे घर में दफन हुए।”
यह हदीस अब्दुल मलिक बिन उमैर से कथित है, इसकी इसनाद ठीक है, लेकिन इसकी कड़ी
टूटी है, इसे इमाम ज़हबी ने उल्लेख किया है, देखिए “सियर आलामुन-नुबला” २/१४७.
उनका निधन ५८ हिज्री में हुआ।
उनका ज्ञान और शिक्षण
आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा का, ज्ञान और धर्मशास्त्र
की समझ में दुनिया की सबसे बड़ी महिलाओं में शुमार होता है, वह धर्म से संबंधित
सभी विषयों- क़ुरआन, हदीस, तफसीर, और धर्मशास्त्र का व्यापक ज्ञान और समझ रखती थीं।
वह पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथियों के लिए उनके कठिन मुद्दों में
संदर्भ हुआ करती थीं, सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम उनसे प्रश्न करते थे तो उनके पास
अपनी समस्या का समाधान पा जाते थे। अबू मूसा अशअरी रज़ियल्लाहु अन्हु इस विषय में कहते
हैं : “जब भी हम - पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथियों - को किसी हदीस की समझ
में कोई कठिनाई पेश आई और फिर हमने आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से पूछा तो हमें उनके पास
उसके बारे में ज़रूर कोई जानकारी मिली।”
मुसलमानों के बीच सैयिदा आयशा
रज़ियल्लाहु अन्हा का स्थान वैसे ही था जैसे कि अध्यापक का स्थान उसके शिष्यों के बीच
होता है, क्योंकि यदि वह मुसलमानों के विद्वानों और पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व
सल्लम के साथियों से ऐसी रिवायतें और हदीसें सुनतीं जो अपने शुद्ध रूप में नहीं
होती थीं तो वह उनके लिए शुद्धिकरण करती थीं, और जो बात उन पर गुप्त रह गई थी उसे स्पष्ट
कर दिया करती थीं, अतः उनके बारे में यह बात प्रसिद्ध होगई, और जिसको भी किसी हदीस
के विषय में कोई संदेह होता था तो वह उनके पास पूछने के लिया आता था।
आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा कुछ कारकों से
अपने उच्च ज्ञान से उत्कृष्ट हुईं, जिन्हों ने उन्हें इस स्थान तक पहुँचने में सक्षम
बनाया, उन में से कुछ महत्वपूर्ण कारक यह हैं :
- उनकी तीव्र प्रतिभा और उनकी स्मृति की शक्ति, क्योंकि उन्हों ने
पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से बहुत हदीसें रिवायत की हैं।
-पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ
उनकी कम उम्र में शादी होने के कारण वह पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के घर में
पली बढ़ीं, और इस तरह वह पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की शिष्य होगईं।
- उनके कमरे में अधिकता से वह्य (ईश्वाणी) का उतरना, और इसके कारण उन्हें
पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की दूसरी पत्नियों पर प्राथमिकता प्राप्त थी।
- ज्ञान और जानकारी से उनको प्यार और गहरा
लगाव था, चुनांचे यदि उनको किसी बात का ज्ञान नहीं होता था या कोई मुद्दा उनकी समझ
में नहीं आता था तो वह उसके बारे में पूछतीं और जानकारी किया करती थीं, इब्ने अबू मुलैका
उनके विषय में कहते हैं : “यदि वह कोई ऐसी चीज़ सुनतीं जिसे वह न जानती होतीं तो उसके
बारे में पूछताछ करती थीं यहाँ तक कि उसको जान लेती थीं।”
उनके ज्ञान और धर्मशास्त्र की गहन समझ के
परिणाम स्वरूप उनका शुभ कमरा ज्ञान के इच्छुकों का दिशा केंद्र हो गया यहाँ तक कि
यह कमरा इस्लाम का पहला पाठशाला और इस्लाम के इतिहास में सबसे बड़ा प्रभाव वाला बन
गया। तथा वह अपने और अपने छात्रों के बीच एक पर्दा डाल लेती थीं, इसका पता मसरूक़ की इस बात से होता है
कि : “मैं ने पर्दा के पीछे से उनके अपने दोनों हाथों से ताली बजाने की आवाज़ को सुना।”
आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने शिक्षा देने
में उच्च शैलियों का पालन किया, इस संबंध में उन्हों ने पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व
सल्लम के अपने साथियों को शिक्षा देने की शैली का अनुसरण किया। उन्हीं शैलियों में
से एक वक्तव्य (बोलने) में जल्दी न करना है, बल्कि बात करने में धीमेपन से काम
लेना ताकि सीखने वाला (शिक्षार्थी) बात को पूरी तरह समझ सके। उर्वा कहते हैं कि सैयिदा
आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने (अबू हुरैरा की) निंदा करते हुए कहा : क्या तुम्हें अबू
हुरैरा पर आश्चर्य नहीं होता कि वह आए और मेरे कमरे के पास बैठ कर पैगंबर
सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से हदीस कथित करने लगे, वह मुझे सुना रहे थे, जबकि मैं नमाज़
पढ़ रही थी, फिर वह मेरी नमाज़ पूरी होने से पहले उठ कर चले गए, यदि मैं उनको पाती तो उन्हें जवाब देती
कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तुम लोगों की तरह जल्दी जल्दी हदीस नहीं
बयान करते थे l
इसी
तरह शिक्षा देने में उनका एक तरीका यह भी था कि वह कभी कभी व्यावहारिक तरीक़े से
शिक्षा देती थीं ताकि शरीअत के व्यावहारिक प्रावधानों का स्पष्टीकरण हो सके जैसे
कि वुज़ू। इसी तरह वह प्रश्नकर्ता के धर्म से संबंधित किसी भी प्रश्न का उत्तर
देने में तंगी नहीं महसूस करती थीं चाहे उसका संबंध मनुष्य के सबसे निजी मुद्दे से
ही हो। इसी तरह हम इस बात को भी देखते हैं कि सैयिदा आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा क़ुरआन
या हदीस के प्रमाणों से युक्त वैज्ञानिक विधि का उपयोग किया करती थीं। यह बात मसरूक़
की रिवायत से स्पष्ट होती है जैसाकि उनका कथन हैः “मैं आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा के पास
टेक लगाए बैठा था, कि इतने में आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा बोलीं : ऐ अबू आयशा ! जो भी
तीन बातों में से कोई एक बात बोले तो उसने अल्लाह पर बहुत बड़ा झूठ बांधा, मैंने पूछाः वे क्या हैं ॽ वह बोलीं : जिसने
यह गुमान किया कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने पालनहार (अल्लाह) को देखा
है तो उसने अल्लाह पर बहुत बड़ा झूठ बाँधा। मसरूक़ ने कहा : मैं टेक लगाए हुए बैठा
था तो संभल कर बैठ गया और कहा : ऐ मोमिनों की माता ! ज़रा रुकिए, जल्दबाजी मत कीजिए, क्या अल्लाह सर्वशक्तिमान
ने यह नहीं फरमाया :
﴿وَلَقَدْ رَآهُ بِالْأُفُقِ الْمُبِينِ ﴾ (التكوير :23)
“और उन्होंने उस (फरिश्ते)
को स्पष्ट क्षितिज पर देखा है।” (सूरह तकवीर : २३)
﴿وَلَقَدْ رَآهُ نَزْلَةً أُخْرَى ﴾ (النجم : 13)
“और उन्हों ने उसे एक बार और
भी देखा है।” (सूरतुन-नज्म : १३)
इस पर वह बोलीं : मैं ने इस उम्मत में सब से पहले पैगंबर
सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से इस विषय में प्रश्न किया तो उन्होंने फ़रमाया : “वह जिबरील
(फरिश्ता) हैं, मैं ने उनको उनके उस रूप में जिस पर वह पैदा किए गए हैँ केवल यही
दो बार देखा हूँ, मैंने उनको आकाश से उतरते हुए देखा, उनकी भारी भरकम बनावट ने आकाश और धरती के
बीच को भर रखा था।”
यह हदीस आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से कथित
है, और यह हदीस सही है, इसे इमाम मुस्लिम ने उल्लेख किया है, देखिए सहीह मुस्लिम हदीस संख्या :१७७.
फिर आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने फरमाया :
क्या तुम ने नहीं सुना कि अल्लाह सर्वशक्तिमान फरमाता है :
﴿لَا تُدْرِكُهُ الْأَبْصَارُ وَهُوَ يُدْرِكُ الْأَبْصَارَ
وَهُوَ اللَّطِيفُ الْخَبِيرُ ﴾ )سورة الأنعام :103)
“निगाहें उसे नहीं पा सकतीं, और वह निगाहों को पा लेता
है, वह अत्यंत सूक्ष्मदर्शी सर्वसूचित हैl” (सूरतुल अनआम : १०3)
और क्या तुमने नहीं सुना कि अल्लाह सर्वशक्तिमान फरमाता है :
﴿وَمَا كَانَ لِبَشَرٍ أَنْ يُكَلِّمَهُ اللَّهُ إِلَّا
وَحْيًا أَوْ مِنْ وَرَاءِ حِجَابٍ أَوْ يُرْسِلَ رَسُولًا فَيُوحِيَ بِإِذْنِهِ
مَا يَشَاءُ إِنَّهُ عَلِيٌّ حَكِيمٌ ﴾ (سورة
الشورى :51(
“किसी मनुष्य की यह शान नहीं कि अल्लाह उससे बात करे, मगर
वह्य (प्रकाशना) करके, या पर्दे के पीछे से, या किसी रसूल (फ़रिश्ते) को भेजे, तो
वह अल्लाह के हुक्म से जो वह चाहे वह्य करे, निःसंदेह वह सर्वोच्च अत्यंत तत्वदर्शी
हैl” (सूरतुश शूरा : ५१)
आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने आगे फरमाया :
और जिसने यह गुमान किया कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अल्लाह की
किताब में से कुछ छुपाया है तो निःसंदेह उसने अल्लाह पर बहुत बड़ा झूठ बाँधा, जबकि
अल्लाह सर्वशक्तिमान फरमाता है :
﴿يَا أَيُّهَا الرَّسُولُ بَلِّغْ مَا أُنْزِلَ إِلَيْكَ مِنْ
رَبِّكَ وَإِنْ لَمْ تَفْعَلْ فَمَا بَلَّغْتَ رِسَالَتَهُ﴾ (سورة المائدة:67)
“ऐ रसूल ! आप की तरफ आपके पालनहार
की ओर से जो कुछ उतारा गया है, उसे पहुँचा दें, यदि आप
ने ऐसा न किया तो अपने रब का संदेश नहीं पहुँचाया।” (सूरतुल-मायदा : ६७)
तथा उन्हों ने फरमाया : और जिसने यह गुमान
किया कि वह (पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) कल क्या होने वाला है उसकी खबर देते
हैं तो निःसंदेह उसने अल्लाह पर बहुत बड़ा झूठ बाँधा, जबकि अल्लाह सर्वशक्तिमान फरमाता
है :
﴿قُلْ لَا يَعْلَمُ مَنْ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ الْغَيْبَ
إِلَّا اللَّهُ﴾ (سورة
النمل : 65).
“आप
कह दीजिए कि : आकाशों और धरती में जो भी हैं, अल्लाह के सिवाय किसी को भी
परोक्ष का ज्ञान नहीं हैl” (सूरतुन नम्ल : ६५)
इस से हमारे लिए यह स्पष्ट हो जाता है
कि आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा इस्लामी सोच का एक गढ़ और ज्ञान के इच्छुकों के लिए एक प्रकाशमान
दीप थीं।
तथा पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उनकी ज़हानत (बुद्धिमत्ता) और उनके ज्ञान प्रेम के
कारण उनसे प्रेम करते थे और उन्हें प्राथमिकता देते थे, जैसाकि आप सल्लल्लाहु
अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “पुरूषों में से बहुत से लोग संपूर्ण (कामिल) हुए हैं,
और औरतों में से केवल फिरऔन की पत्नी आसिया और मर्यम बिन्त इम्रान कामिल (संपूर्ण)
हुई हैं, और औरतों पर आयशा की प्रतिष्ठा ऐसी ही है जैसे कि “सरीद” (नामक खाने) को अन्य सारे खानों पर
प्रतिष्ठा प्राप्त है।”
क़ुरआन
की भाष्यकार और हदीस की वर्णनकर्ता महिला
आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा क़ुरआन की भाष्यकार
और हदीस की वर्णनकर्ता विद्वान थीं, वह मुसलमानों की महिलाओं को शिक्षा देती
थीं, तथा पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के बहुत सारे साथी धर्म के मुद्दों में उनसे
प्रश्न किया करते थे, क्योंकि अल्लाह सर्वशक्तिमान ने उनके लिए वे सभी कारण जुटा
दिए थे जिनके फलस्वरूप वह हदीस और तफसीर की एक प्रसिद्ध विद्वान बन गईं।
जब हम तफसीर (क़ुरआन की व्याख्या) के
क्षेत्र में उनकी महान भूमिका की तरफ आते हैं तो हम इस बात को पाते हैं कि उनका अबू
बक्र सिद्दीक़ की बेटी होना उन कारणों में से एक है जिन्हों ने उन्हें तफसीर के
क्षेत्र में इस स्थान पर पहुँचा दिया, क्योंकि वह अपने बचपन से ही अपने पिता अबू-बक्र
सिद्दीक़ के मुंह से क़ुरआन सुन रही थीं, जबकि उनकी ज़हानत और स्मरण शक्ति इसका एक अन्य कारण है, इस बात का अवलोकन हम उनके इस कथन से कर सकते हैं
: “जब मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर मक्का में आयत :
﴿بَلِ السَّاعَةُ مَوْعِدُهُمْ وَالسَّاعَةُ أَدْهَى وَأَمَرُّ﴾ ) القمر:46)
“बल्कि क़ियामत की घड़ी उनके
वादा का समय है, और क़ियामत की घड़ी बहुत
बड़ी आपदा और कड़वी चीज़ है।” (सूरतुल क़मरः 46).
उतरी तो मैं उस समय एक खेलती हुई बच्ची थी,
और जब सूरतुल बक़रा और सूरतुन निसा उतरी तो मैं उनके पास थी।”
तथा महत्वपूर्ण कारणों में से एक यह भी है
कि वह अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर वह्य (ईशवाणी) उतरने के समय
उपस्थित होती और उसका मुशाहदा करती थीं और क़ुरआन की आयतों के अर्थों और कुछ आयतों
के संकेतों के बारे में उनसे पूछती थीं। इस तरह उन्हों ने क़ुरआन के उतरते ही उसे पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सीखने तथा उसके
अर्थ को भी पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सीखने के सम्मान को प्राप्त कर लिया।
इसके साथ ही उन्हें वह सभी चीज़ें प्राप्त थीं जिनकी एक मुफस्सिर (भाष्यकार) को ज़रूरत
होती है जैसे कि अरबी भाषा में उनकी निपुणता, और उनके ज़ुबान की फसाहत और
व्याख्यान की उच्चता।
सैयिदा आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा इस बात का
ख्याल रखती थीं कि क़ुरआन करीम की व्याख्या धर्म के सिद्धांतों और उसकी मान्यताओं के
अनुसार करें, और इस बात का स्पष्टीकरण उर्वा के इस कथन से होता है जो उन्हों ने
आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से अल्लाह तआला के इस कथन के विषय में पूछते हुए कहा :
﴿ حَتَّى إِذَا
اسْتَيْأَسَ الرُّسُلُ وَظَنُّوا أَنَّهُمْ قَدْ كُذِبُوا جَاءَهُمْ نَصْرُنَا ﴾ (سورة يوسف :110).
“यहाँ तक कि जब वे रसूल निराश
होने लगे और वे समझने लगे कि उनसे झूठ कहा गया था तो उनके पास हमारी सहायता पहुँच गईl” (सूरत यूसुफ : ११०)
मैंने कहा : आयत में كُذِبُوا (कुज़ेबू) है या كُذِّبُوا (कुज्ज़ेबू) ॽ तो आयशा रज़ियल्लाहु
अन्हा ने कहा : كُذِّبُوا (कुज्ज़ेबू) है, तो मैंने कहा : आयत का मतलब यह है कि रसूलों को विश्वास हो
गया था कि उनकी जाति ने उनको झुठला दिया तो यहाँ गुमान की बात क्या है ॽ तो उन्होंने उत्तर दिया : हाँ, निःसंदेह
उनको इसका विश्वास हो गया था। तो मैंने कहा : आयत में तो यह है कि﴿ وَظَنُّوا أَنَّهُمْ
قَدْ كُذِبُوا ﴾ (उनको गुमान हुआ कि उनको झूट कहा गया है)
ॽ इस पर उन्होंने कहा : अल्लाह की पनाह ! पैगंबर लोग अपने पालनहार के बारे में ऐसा
गुमान नहीं कर सकते थे, तो मैंने कहा : फिर इस आयत का क्या अर्थ है ॽ तो वह बोलीं कि : वे रसूलों के माननेवाले
हैं जो अपने पालनहार पर ईमान लाए और उन (रसूलों) को सच्चा माना, तो उनके ऊपर
परीक्षण और आज़माइश की अवधि लंबी होगई और और उनसे (अल्लाह की) मदद विलंब होगई, यहाँ
तक कि रसूल अपनी जाति के उन लोगों से निराश हो गए जिन्हों ने उनको झुठलाया था और रसूलों
को लगा कि उनके माननेवालों ने भी उनको झुटला दिया तो उस समय उनके पास अल्लाह की सहायता
आ गई।”
एक अन्य स्थान पर, हमारे लिए यह बात
स्पष्ट होकर सामने आती है कि सैयिदा आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा क़ुरआन की आयतों के आपस
में एक दूसरे से संबंध को उजागर करने की कोशिश करती थीं इस प्रकार कि क़ुरआन की व्याख्या
क़ुरआन के द्वारा करती थीं। इस तरह सैयिदा आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने अपने बाद आनेवाले
प्रत्येक व्यक्ति के लिए क़ुरआन करीम को समझने के लिए सबसे अच्छे तरीक़े का रास्ता
हमवार कर दिया। जहाँ तक इस बात का संबंध है कि वह सहाबा के बीच हदीस के वरिष्ठ
कंठस्थ कर्ताओं में से थीं, तो उन्हें हदीस के याद करने और उसकी रिवायत में पाँचवाँ
स्थान (रैंक) प्राप्त था, क्योंकि वह अबू हुरैरा, इब्ने उमर, अनस बिन मालिक, और
इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुम के बाद आती हैं।
किंतु वह इस बात के द्वारा उनसे उतकृष्ट थीं कि
उन्हों ने अपनी अक्सर हदीसों को सीधे पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सुन कर कथित
किया है, जिस तरह कि उनकी अक्सर हदीसें क्रियात्मक सुन्नतों पर आधारित होती थीं।
क्योंकि उनका मुबारक कमरा हदीस का पहला पाठशाला होगया था जहाँ ज्ञान के इच्छुक पैगंबर
सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की की ज़ियारत के लिए और सैयिदा आयशा से हदीस लेने के
लिए आते थे जो पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सब से निकट रहने वाली थीं, तो वह अपने ज्ञान से किसी पर कंजूसी नहीं
करती थीं, इसी कारण उनसे हदीस रिवायत करने वालों की संख्या बड़ी है।
आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा हदीस के शब्दों को
हू ब हू बनाए रखने को अनिवार्य समझती थीं, जैसा कि उर्वा बिन
जुबैर की रिवायत में हमने इस बात को नोट किया है जब आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने
उनसे कहा : “ऐ मेरी बहन के बेटे (भांजे)! मुझे जानकारी मिली है कि अब्दुल्लाह बिन अम्र
हमारी ओर से गुज़र कर हज को जाने वाले हैं, तो तुम उनसे मिलो और उनसे पूछो, क्योंकि उन्हों ने पैगंबर सल्लल्लाहु
अलैहि व सल्लम से बहुल ज्ञान प्राप्त किया है। उर्वा कहते हैं किः तो मैं उनसे मिला
और उनसे बहुत सारी चीज़ों के बारे में पूछा जिनको वह पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व
सल्लम के हवाले उल्लेख करते थे, तो उनकी उल्लेख की हुई बातों में से यह भी थी कि पैगंबर
सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : निःसंदेह अल्लाह तआला लोगों से ज्ञान को यकायक
नहीं छीन लेगा, बल्कि वह विद्वानों को उठा लेगा तो उनके साथ ज्ञान भी उठ जाएगा, और
लोगों के बीच मूर्ख (अज्ञानी) सरदारों को रख छोड़े गा जो उन्हें बिना ज्ञान के फत्वा
देंगे, तो वे खुद गुम्राह होंगे और दूसरों को भी गुम्राह करेंगे।” उर्वा
कहते हैं कि जब मैंने यह हदीस आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा को सुनाई तो उन्होंने इसे बहुत
बड़ा समझा और उसे नहीं पहचाना। वह बोलीं : क्या उन्होंने तुमसे यह कहा है कि उन्होंने
इसे पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फरमाते हुए सुना है ॽ उर्वा कहते हैं : यहाँ तक कि जब अगला
साल आया, तो आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने उनसे कहा : अब्दुल्लाह बिन अम्र आए हैं, तो
तुम उनसे मिलो, फिर बात का आरंभ करो यहाँ तक कि उनसे उस हदीस के बारे में पूछो जो
उन्हों ने तुम से ज्ञान के विषय में वर्णन की है। उर्वा कहते हैं कि मैं उनसे मिला
और उनसे पूछा तो उन्होंने उसे मेरे लिए उसी तरह उल्लेख किया जैसा कि पहली बार उल्लेख
किया था। उर्वा कहते हैं : तो जब मैंने उनको यह बात बतायी तो आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा
बोलीं : मैं समझती हूँ कि उन्हों ने सही कहा, मेरे ख्याल से उन्हों ने उस में कुछ कमी
बेशी नहीं की है।”
इस हदीस को आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने कथित
किया और यह हदीस सही है, इसे इमाम मुस्लिम ने उल्लेख किया है, देखिए सहीह मुस्लिम, हदीस नंबर : २६७३.
यही कारण है कि हदीस के कुछ वर्णनकर्ता उनके
पास आकर उन्हें कुछ हदीसें सुनाते थे ताकि उसकी प्रामाणिकता की पुष्टि करें। इसी तरह अगर वे किसी मामले में इख्तिलाफ़
करते तो उनके पास आते थे। इन सारी बातों से हमें सुन्नत के हस्तांतरण और लोगों के बीच उसके प्रसार में सैयिदा
आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा की भूमिका का पता चलता है। और अगर अल्लाह सर्वशक्तिमान ने उनको इसके
लिए तैयार न किया होता तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की उनके घर की क्रियात्मक
सुन्नतों का एक बड़ा हिस्सा नष्ट हो जाता।
धर्मशास्त्री महिला
सैयिदा आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा धर्मशास्त्र
की समझ और ज्ञान में दुनिया की महिलाओं में सब से महान थीं, वह वरिष्ठ मुजतहिद सहाबा में से थीं, और
जैसाकि हम पहले उल्लेख कर चुके हैं कि पैगंबर सल्लल्हु अलैहि व सल्लम के सहाबा उनसे
फत्वा पूछते तो वह उन्हें फत्वा देती थीं, तथा क़ासिम बिन मुहम्मद ने उल्लेख किया
है कि आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा अबू-बक्र की खिलाफत के समय से ही फत्वा देने का काम करती
थीं और अपने निधन तक यह काम अंजाम देती रहीं। उन्होंने केवल उसी चीज़ पर बस नहीं किया
जो वह पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से जानती थीं, बल्कि जिन घटनाओं के बारे
में वह क़ुरआन या हदीस में कोई हुक्म (प्रावधान) नहीं पाती थीं, उनके प्रावधानों
को निकालने के लिए वह इज्तिहाद करती थीं, चुनांचे जब उनसे किसी मुद्दे का हुक्म पूछा
जाता था तो वह सब से पहले क़ुरआन और हदीस में तलाश करती थीं, यदि वह उन दोनों में नहीं
पातीं तो वह हुक्म को निकालने के लिए इज्तिहाद करती थीं (यानी क़ुरआन और हदीस के सिद्धांतों
की रौशनी में उनका समाधान खोजती थीं), यहाँ तक कि यह कहा गया है कि इस्लामी शास्त्र
के एक चौथाई प्रावधान उन्हीं से उद्घृत हैं। इस विषय में एक उदाहरण यह है कि वह “मुतआ” की शादी (अल्पकालिक या क्षणिक शादी) को हराम ठहराने
पर अल्लाह सर्वशक्तिमान के इस फरमान से तर्क (सबूत) देती थीं :
﴿وَالَّذِينَ هُمْ لِفُرُوجِهِمْ حَافِظُونَ (5) إِلَّا عَلَى
أَزْوَاجِهِمْ أَوْ مَا مَلَكَتْ أَيْمَانُهُمْ فَإِنَّهُمْ غَيْرُ مَلُومِينَ (6)
فَمَنِ ابْتَغَى وَرَاءَ ذَلِكَ فَأُولَئِكَ هُمُ الْعَادُونَ (7) ﴾ (سورة المؤمنون :
5-7)
“और
जो अपने गुप्तांगों की रक्षा करनेवाले हैं, सिवाय अपनी पत्नियों या लौण्डियों
के, तो वे निन्दनीय नहीं हैं, परंतु जो कोई इसके अलावा कुछ
और ढूँढे तो ऐसे ही लोग सीमा उल्लंघन कर जानेवाले हैं l” (सूरतुल मोमिनून : ५-7)
आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा इस्लामी धर्म शास्त्र
के कुछ मुद्दों पर अपनी स्वतंत्र राय रखती थीं, जिनके द्वारा उन्हों ने सहाबा के विचारों
से मतभेद किया है, उन में से कुछ निम्नलिखित हैं :
१- अस्र की नमाज़ के बाद दो रक्अत नफ्ल पढ़ना
जायज़ है, आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा का कहना है किः “पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व
सल्लम ने अस्र के बाद दो रक्अतें कभी नहीं छोड़ी।” और आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने
कहा कि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान यह है कि : “तुम ढूंढ ढांढ कर सूरज
के उगते समय या उसके डूबते समय नमाज़ न पढ़ो।”
इस हदीस को आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने कथित
किया है और यह हदीस सही है, देखिए सहीह मुस्लिम, हदीस नंबर : ८३३.
हालांकि यह बात ज्ञात है कि अस्र की
नमाज़ के बाद नफ्ल नमाज़ पढ़ना मक्रूह है, कुछ विद्वानों ने कहा है कि अस्र के बाद
नफ्ल नमाज़ पढ़ना नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ विशिष्ट है।
२- इसी तरह उनका मानना यह था कि रमज़ान की
तरावीह की रक्अतों की संख्या वित्र के साथ ग्यारह है, और वह पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की
नमाज़ से दलील पकड़ती थीं। क्योंकि जब अबू
सलमा बिन अब्दुर्रहमान ने उनसे पूछा किः “रमज़ान में पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व
सल्लम की नमाज़ कैसी होती थी ॽ तो उन्होंने उत्तर दिया किः पैगंबर सल्लल्लाहु
अलैहि व सल्लम रमज़ान में या उसके अलावा में ग्यारह रक्अत से अधिक नहीं पढ़ते थे, वह चार रक्अत नमाज़ पढ़ते थे, तो उनकी सुंदरता
और लंबाई के बारे में मत पूछो। इसके बाद वह फिर चार रक्अत नमाज़ पढ़ते जिनकी सुंदरता
और लंबाई का क्या पूछहना, फिर वह तीन रक्अत नमाज़ पढ़ते थे। आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा कहती हैं : मैं ने
कहा : ऐ अल्लाह के पैगंबर ! क्या आप वित्र पढ़ने से पहले सोते हैंॽ तो आप ने फ़रमाया : “ऐ आयशा, मेरी दोनों आँखें सोती हैं लेकिन
मेरा दिल नहीं सोता।”
यह हदीस आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से कथित
है, और सही है, देखिए सहीह बुखारी, हदीस नंबर : ११४७ और २०१३.
इस के बावजूद सहाबा २० रक्अत पढ़ते थे क्योंकि
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के इस संख्या में नमाज़ पढ़ने से उसके अलावा के
इनकार का पता नहीं चलता है।
इस प्रकार, आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा के अंदर उच्च
व्याख्यान और व्यापक बुद्धि दोनों एक साथ मौजूद थीं, यहाँ तक कि अता ने उनके विषय में कहा है कि : “आयशा
रज़ियल्लाहु अन्हा लोगों के बीच सब से अधिक धर्मशास्त्र की समझ रखनेवाली और अवाम के
बारे में सब से अच्छा विचार वाली थीं।”
निष्कर्षः
आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा का छियासठ (६६) साल
की उम्र में निधन हुआ, जबकि उन्हों ने मुसलमानों के धर्म शास्त्र और उनके सामाजिक और
राजनीतिक जीवन पर अति गहरा प्रभाव छोड़ा और उनके लिए पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व
सल्लम से कई हज़ार सहीह हदीसें सुरक्षित कर गईं।
आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने पैगंबर सल्लल्लाहु
अलैहि व सल्लम के निधन के बाद अरबी महिला के बारे में लोगों के विचार को सही करने के
लिए ज़िंदा रहीं, चुनांचे उन्हों ने इस्लामी ज्ञान के सभी पहलुओं को एकत्रित कर
लिया था, वह क़ुरआन कि व्याख्या कार, हदीस के विज्ञान और धर्म शास्त्र में निपुण थीं। और जैसा
कि हमने पहले उल्लेख किया है कि उन्हीं के बारे में पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व
सल्लम ने फ़रमाया था कि उनकी प्रतिष्ठा महिलाओं पर ऐसी ही है जैसे “सरीद” (नामक खाने) कि प्रतिष्ठा सारे खानों पर है।
गोया कि उन्हें सारी महिलाओं पर प्रतिष्ठा प्राप्त है।
इसी तरह उर्वा बिन ज़ुबैर ने उनके विषय में
फरमाया : “मैंने धर्मशास्त्र, चिकित्सा विज्ञान और कविता में आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा
से बढ़कर जानकार नहीं देखा।” तथा अबू उमर बिन अब्दुल-बर्र का उनके बारे में कहना
है कि: “आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा अपने समय में ज्ञान के तीन क्षेत्रों : धर्म शास्त्र, चिकित्सा विज्ञान और कविता के ज्ञान में
अनुपम थीं।”
इस तरह हम सैयिदा आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा का महान प्रभाव
महसूस करते हैं जो ज्ञान के इच्छुकों और ज्ञानियों के लिए एक ज्योतिमय चिराग समझी जाती
थीं, वह महिला जो मानवता के शिक्षक (पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व
सल्लम) के सब से निकट और उनकी सब से चहेती थीं, जिन्हों ने उनसे बहुत कुछ सीखा था और
फिर उससे इस्लामी समाज को लाभ पहुँचाया। इस तरह वह पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व
सल्लम के मिशन के एक विस्तार के रूप में देखी जाती हैं।
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