Sunday, 24 November 2013

HAZRAT KHADIJA (R.A)

{HINDI}
HAZRAT KHADIJA (R.A)





आप का नसब (वंश वृक्ष) और पालन पोषण :
वह ख़दीजह पुत्री खुवैलिद बिन असद बिन अब्दुल उज्ज़ा बिन कुसै बिन किलाब, कुरैशी और असदी थीं, उनका जन्म ६८ हिज्री पूर्व (५६ ई.) में हुआ था। वह एक महिमा और संप्रभुता वाले परिवार में पली बढ़ी थीं। उनका पालन पोषण गुणों और अच्छे व्यवहार पर हुआ था। वह सतीत्व, बुद्धि और दृढ़ता से सुपरिचित थीं यहाँ तक कि उनकी क़ौम ने जाहिलियत (इस्लाम धर्म से पूर्व) के काल में भी उन्हें पाक व पवित्र महिला के नाम से याद किया।
ख़दीजह रज़ियल्लाहु अन्हा एक धनी व्यापारी महिला के रूप में शोहरत रखती थीं, वह पुरूषों को मज़दूरी पर रखती थीं और मुज़ारबत के नियम पर व्यापार के लिए पैसे देती थीं l उन्हें  पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के बारे में सूचना पहुँची कि वह एक सच्चे, ईमानदार और महान चरित्र वाले हैं, तो वह उनके पास कहला भेजीं और उन्हें अपने मैसरह नामक गुलाम के साथ शाम देश की ओर व्यापार के लिए यात्रा करने की पेशकश की। पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया, और उन के व्यापार में पहले जितना लाभ हुआ करता था उस के दोगुना मुनाफा हुआ। तथा उनके गुलाम मैसरह ने उन्हें पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के चरित्र के बारे में बताया, चुनाँचि उन्हों ने पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ किसी को लगा दिया जिस ने उनके सामने खदीजह रज़ियल्लाहु अन्हा से शादी करने का प्रस्ताव रखा, पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसे स्वीकार कर लिया। इस के बाद ख़दीजह रज़ियल्लाहु अन्हा ने अपने चाचा अम्र बिन असद बिन अब्दुल उज्ज़ा को बुला भेजा, वह आए और पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से उनका विवाह कर दिया। उस समय ख़दीजह रज़ियल्लाहु अन्हा की आयु चालीस वर्ष थी, जबकि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पच्चीस वर्ष के थे l
ख़दीजह रज़ियल्लाहु अन्हा वह पहली महिला थीं जिनसे पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने शादी की, और वह आपके निकट सबसे प्रिय पत्नी थीं। तथा यह उनकी करामत में से है कि जब तक वह जीवित रहीं आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने किसी अन्य महिला से शादी नहीं की। उन्हीं से आपके दो बेटे और चार बेटियाँ पैदा हुईं और वे क़ासिम (जिन के नाम पर आपकी कुन्नियत अबुल क़ासिम” थी), अब्दुल्लाह,  रुक़य्या, ज़ैनब, उम्म कुलसूम और फातिमा हैं।
उनका इस्लाम धर्म स्वीकारना :
जब अल्लाह सर्वशक्तिमान ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को संदेष्टा बनाकर (यानी इस्लाम धर्म का संदेश देकर) भेजा तो ख़दीजह रज़ियल्लाहु अन्हा, अल्लाह और उसके संदेष्टा पर सबसे पहले ईमान लाने वाली थीं। तथा वह पुरुषों और महिलाओं में   सब से पहले इस्लाम धर्म को स्वीकार करने वाली थीं।
पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और ख़दीजह रज़ियल्लाहु अन्हा  इस्लाम के सार्वजनिक प्रचार की शरूआत होने तक चुपके से नमाज़ पढ़ते थे। पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को अपनी जाति के लोगों की ओर से बहुत यातना और इनकार का सामना हुआ, तो ख़दीजह रज़ियल्लाहु अन्हा कुरैश के अनेकेश्वरवादियों की ओर से आप को पेश आने वाली झूठ बातों पर आपके दुःख को हल्का करती थीं और आप को सांत्वना देती थीं।
जब अल्लाह सर्वशक्तिमान ने पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर वह्य (प्रकाशना, ईशवाणी) का अवतरण किया, तो उनसे कहाः पढ़ो अपने पालनहार के नाम से जिसने पैदा किया, मनुष्य को खून के लोथड़े से पैदा किया। पढ़ो और तुम्हारा पालनहार बहुत दानशील है। (सूरतुल अलक़ः 1-३)
इन आयतों के साथ पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पलटे, और आप का दिल धक-धक कर रहा था। ख़दीजह रज़ियल्लाहु अन्हा के पास आए और कहा : मुझे चादर उढ़ा दो, मुझे चादर उढ़ा दो। उन्हों ने आपको चादर उढ़ा दिया यहाँ तक कि आपका भय समाप्त हो गया।
फिर  ख़दीजह  रज़ियल्लाहु अन्हा से कहाः ख़दीजह ! मुझे क्या हुआ है और उनको पूरी बात बतलाकर कहाः "मुझे अपनी जान का डर लगता है।"
ख़दीजह रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहाः हरगिज़ नहीं, आप खुश हो जाईये, अल्लाह की क़सम ! अल्लाह सर्वशक्तिमान आप को कभी रुसवा (अपमानित) नहीं करेगा। आप तो रिश्तेदारी निभाते हैं, सच्ची बात करते हैं, कमज़ोरों का बोझ उठाते हैं, मेहमान की मेज़बानी करते हैं, और हक़ (के रास्ते) की मुसीबतों पर सहायता करते हैं।
इसके बाद ख़दीजह रज़ियल्लाहु अन्हा, पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को अपने चचेरे भाई वरक़ह बिन नौफिल बिन असद बिन अब्दुल उज़्ज़ा के पास ले गईं। वह जाहिलियत के काल में ईसाई हो गए थे और इब्रानी भाषा में लिखना जानते थे। और वह जितना अल्लाह सर्वशक्तिमान चाहता था इब्रानी भाषा में इन्जील लिखते थे। उस समय बहुत बूढ़े और अंधे हो चुके थे। उनसे ख़दीजह रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहाः  भाईजान ! आप अपने भतीजे की बात सुनें।
वरक़ह ने कहाः भतीजे ! तुम क्या देखते हो तो  पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जो कुछ देखा था बयान कर दिया।
इस पर वरक़ह ने कहाः यह तो वही फरिश्ता (स्वर्गदूत) है जिसे अल्लाह सर्वशक्तिमान ने मूसा अलैहिस्सलाम पर उतारा था। काश मैं उस समय शक्तिवान होता ! काश मैं उस समय जीवित होता ! जब आप की जाति आप को निकाल देगी।
पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा : क्या ये लोग मुझे निकाल देंगे
वरक़ह ने कहाः हाँ, जब भी कोई आदमी इस तरह का संदेश लाया जैसा आप लाए हैं तो उस से अवश्य दुश्मनी की गई, और यदि मैं ने आपका समय पा लिया तो मैं आपकी भरपूर सहायता करूंगा।
इसके बाद शीघ्र ही वरक़ह की मृत्यु हो गई, और एक अवधि तक वह्य (ईशवाणी) का सिलसिला रबंद हो गया। तो इस पर पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को इतना दुःख हुआ कि उसके कारण आप कई बार पहाड़ की चोटियों पर गए ताकि वहाँ से अपने आपको नीचे गिरा दें, लेकिन जब जब भी आप किसी पहाड़ की चोटी पर चढ़ते ताकि आपने आपको वहाँ से नीचे फेंक दें तो  जिबरील अलैहिस्सलाम आपके सामने प्रकट होते और कहते : मुहम्मद ! आप अल्लाह के सच्चे संदेष्टा हैं। इस से आपके दिल को सुकून मिलता और आपका मन शांत हो जाता था, अतः आप वापस जाते थे। जब फिर वह्य के बंद होने की अवधि लंबी हो जाती तो आप फिर उसी तरह करते थे, लेकिन जैसे ही किसी पहाड़ की चोटी पर चढ़ते, आपके सामने जिबरील अलैहिस्सलाम प्रकट होते और फिर वही  बात कहते थे।
इस हदीस को आयशह रज़ियल्लाहु अन्हा ने वर्णन किया है और यह हदीस सही है। (सहीह बुखारी, हदीस संख्या : ६९८२).
पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के निकट उनका स्थान :
ख़दीजह रज़ियल्लाहु अन्हा एक बुद्धिमान, सम्मानित, धर्मनिष्ठ, पवित्र और दानशील औरत तथा स्वर्ग में जाने वालों में से थीं,  अल्लाह सर्वशक्तिमान ने अपने पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को यह आदेश दिया था कि उनको स्वर्ग में मोती से बने एक ऐसे घर की खुशखबरी दे दें जहाँ कोई शोरगुल होगा और कोई थकान।
पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ख़दीजह रज़ियल्लाहु अन्हा को अपनी सभी पत्नियों पर प्राथमिकता देते थे और उनको बहुत याद करते थे, आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा कहती हैं कि मुझे पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पत्नियों में से किसी पर भी उतना अधिक जलन (ग़ैरत) नहीं हुआ जितना ख़दीजह रज़ियल्लाहु अन्हा पर था, जबकि मैं उनको देखी भी नहीं थी, लेकिन पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उनको बहुत याद करते थे, कभी ऐसा भी होता कि आफ बकरी ज़बह करते, फिर उसके टुकड़-टुकड़े करते और ख़दीजह रज़ियल्लाहु अन्ह की सहेलियों के पास भिजवा देते थे, इस पर मैं ने कभी कभार आपसे कहा : मानो ख़दीजह को छोड़ कर दुनिया में और कोई औरत नहीं है, तो आप कहते : वह ऐसी थीं, और ऐसी थीं, और उनसे मेरे बच्चे भी हुए।
इस हदीस को आयशह रज़ियल्लाहु अन्हा ने रिवायत किया है और यह हदीस सही है। (अल-जामिउस्सहीहः 3818)
आयशह रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं किः जब आप खदीजह का चर्चा करते, तो उनकी खूब तारीफ करते। आयशह ने कहाः तो मुझे गैरत आ गई और मैं ने कहाः आप लाल मुँह वाली को कितना याद करते हैं, जबकि अल्लाह ने उसके बजाय आपको उस से अच्छी औरत प्रदान किया है ! तो आप ने फरमायाः अल्लाह ने मुझे उस से श्रेष्ठतर औरत नहीं प्रदान किया है ; वह मुझ पर ईमान लाई जबकि लोगों ने मुझे नकार दिया, उसने मुझे सच्चा माना जबकि लोगों ने मुझे झुठलाया, उसने अपने धन से मुझे सांत्वना दिया जबकि लेगों ने मुझे वंचित कर दिया, तथा अल्लाह तआला ने मुझे उससे औलाद प्रदान किए जबकि अन्य औरतों की औलाद से मुझे वंचित रखा।
इस हदीस को आयशह रज़ियल्लाहु अन्हा ने रिवायत किया है और इसकी इसनाद हसन (अच्छी) है। (हैसमी की किताब मजमउज़्ज़वाइद ९/२२७).  
उनका निधन :
इस्लाम धर्म के फैलाने में अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का दाहिना हाथ ख़दीजह रज़ियल्लाहु अन्हा का आप के मदीना की ओर हिज्रत (स्थानांतरण) करने से तीन साल पहले निधन हो गया, उस समय वह पैंसठ (65) साल की थीं। अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने स्वयं उन्हें गड्ढे में उतारा और अपने हाथों से उन्हें क़ब्र में दाखिल किया। उनकी मौत अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के लिए एक बड़ी आपदा थी, जिसे आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अल्लाह सर्वशक्तिमान के फैसले से संतुष्ट होते हुए धैर्य के साथ सहन किया।

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