उम्मुल-मोमिनीन
सैयिदा जुवैरियह बिन्त अल-हारिस रज़ियल्लाहु अन्हा
{HINDI}
HAZRAT JUWERIYAH (r.a)
उम्मुल-मोमिनीन जुवैरियह बिन्त अल-हारिस रज़ियल्लाहु अन्हा
सुगन्धित जीवनी
ऐसी होती है जिसका एक हिस्सा बनने की बहुत से अच्छे लोगों की चाहत होती है, और विश्वासियों
की माताओं यानी पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पवित्र पत्नियों की जीवनी से अधिक
सच्ची, अधिक सुंदर और सब से तरोताज़ा जीवनी किसी की नहीं है। हम उनकी जीवनी से
अवगत होते हैं, ताकि हमें उससे पाठ और सीख मिले। आईये, हम विश्वासियों की माँ जुवैरियह
रज़ियल्लाहु अन्हा की जीवनी से कुछ खुशबूदार फूल चुनते हैं, जिन्हें अल्लाह सर्वशक्तिमान
ने पवित्रता से विशिष्ट किया है। आपकी पवित्र जीवनी कितनी खूबसूरत है – अल्लाह आप
से खुश हो और आपको को खुश कर दे-।
मोमिनों की माँ जुवैरियह रज़ियल्लाहु अन्हा का पालन-पोषणः
उनका पूरा
नाम इस तरह है : बर्रह बिन्त अल-हारिस बिन अबू ज़िरार बिन हबीब बिन आइज़ बिन मालिक
l
वह खुज़ाअह
के क़बीले से थीं, उनके पिता बनी मुस्तलिक़ के सरदार और मुखिया थे, बर्रह
रज़ियल्लाहु अन्हा ने अपने पिता के घर में सम्मानपूर्ण आराम व चैन का जीवन बिताया,
उनका घर खानदानी शराफत और पुराने समय से सम्मान और परंपरा वाला था।
बर्रह
रज़ियल्लाहु अन्हा की कमउम्री में ही खुज़ाअह के एक नौजवान मुसाफेअ बिन सफ्वान से
शादी हो गई थी, उस समय उनकी उम्र २० साल से अधिक नहीं हुई थी।
प्रकाश की शुरूआतः
बनी मुस्तलिक़
के लोगों के दिलों में शैतान ने यह ख़याल डालना शुरू किया और उसे उनके लिए सुंदर बना
कर पेश किया कि वे ताक़तवर लोग हैं मुसलमानों को पराजित कर सकते हैं, इसलिए वे पैगंबर
सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की अगुवाई वाले मुस्लिम समाज से लड़ाई करने की तैयारी करने
लगे, और पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से लड़ने के लिए एकत्र हो गए, उनकी
अगुवाई उनका सरदार हारिस बिन अबू ज़िरार कर रहा था, इस लड़ाई का परिणाम यह निकला
कि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की जीत हुई, और बनू मुस्तलिक़ अपने ही घर में पराजित
हो गए। तो पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बहुत से पुरुषों और महिलाओं को बंदी
बना लिया, जुवैरियह के पति मुसाफेअ बिन सफ्वान उन लोगों में से थे जो मुसलमानों की
तलवारों से मारे गए थे, जबकि जुवैरियह रज़ियल्लाहु अन्हा उन महिलाओं में शामिल थीं
जिन्हें बंदी बना लिया गया था, और वह साबित बिन कैस बिन शम्मास अल अन्सारी
रज़ियल्लाहु अन्हु के हिस्से में आई थीं, उस समय उन्होंने अपनी आज़ादी के बदले
उन्हें कुछ धनराशि देने पर समझौता कर लिया था ; क्योंकि वह आज़ादी के लिए बहुत
उत्सुक थीं।
जुवैरियह रज़ियल्लाहु अन्हा की पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व
सल्लम के साथ शादी
जुवैरियह
रज़ियल्लाहु अन्हा साबित बिन कैस बिन शम्मास - या उनके एक चचेरे भाई - के हिस्से में
आईं थीं, लेकिन उन्हों ने कुछ पैसों के बदले अपने आपको आज़ाद कराने के लिए समझौता
कर लिया था। वह एक सुंदर औ रूपवान महिला थीं जो आँखों को आकर्षित करती थीं। आयशा
रज़ियल्लाहु अन्हा कहती हैं : वह पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास पैसे के
बदले अपनी आज़ादी के समझौते के विषय में मदद मांगने के लिए आईं। जब वह दरवाज़े पर खड़ी
हुईं और मैं ने उन्हें देखा तो मुझे उनका आना अच्छा नहीं लगा और मैं ने जान लिया किः
पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उनके अंदर वह चीज़ देख लेंगे जो मैं ने देखी है। वह
बोलीं : ऐ अल्लाह के पैग़ंबर ! मैं जुवैरियह बिन्त अल-हारिस हूँ, और मेरा मामला आपके
ऊपर रहस्य नहीं है, मैं साबित बिन कैस बिन शम्मास के हिस्से में आई हूँ, लेकिन मैं
ने पैसों के बदले अपनी आज़ादी का उनके साथ समझौता कर लिया है, और आपके पास अपनी
आज़ादी के संबंध में मदद मांगने के लिए आई हूँ। तो पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व
सल्लम ने कहा : क्या तुम इससे बेहतर बात को स्वीकार करोगीॽ तो वह पूछीं, ऐ अल्लाह
के रसूल, वह क्या हैॽ आप ने फरमाया : मैं तुम्हारी आज़ादी के पैसे भुगतान कर दूँ
और तुमसे शादी कर लूँ, तो वह बोलीं : ठीक है। आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा कहती हैं : तो
लोगों ने एक दुसरे से सुना कि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जुवैरियह से शादी
कर ली है, तो जिनके हाथों में भी कोई क़ैदी था उनको तुरंत आज़ाद करके छोड़ दिए और कहने
लगे कि वे पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के ससुराल के लोग हो गए, आयशा
रज़ियल्लाहु अन्हा कहती हैं : तो मैं ने किसी महिला को नहीं देखा जो अपनी क़ौम के
लिए उनसे अधिक बरकत वाली (शुभ) हो, उनके कारण बनी मुस्तलिक़ के सौ (100) घराने
वाले आज़ाद कर दिए गए।
यह हदीस आयशा
रज़ियल्लाहु अन्हा से वर्णित है, और यह हदीस “हसन” है, इसे इब्ने क़त्तान
ने उल्लेख किया है, देखिए “अहकामुन नज़र” पृष्ठ संख्याः १५३.
अभी थोड़ी
देर पहले, वह आज़ादी की खुशबू सूँघने के लिए तड़प रही थीं, लेकिन उन्हें उससे भी बड़ी
चीज़ मिल गई। चुनांचे जुवैरियह रज़ियल्लाहु अन्हा पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम
की बात सुन कर बहुत खुश हो गईं और उनका चेहरा खुशी से दमक उठा, तथा इस खुशी का एक कारण
वह सुरक्षा व शांति भी थी जो उन्हें अपमान और बर्बादी के बाद मिलने वाला थी, अतः उन्हों
ने बिना झिझक और संकोच के तुरंत उत्तर दियाः “हाँ, ऐ अल्लाह के
रसूल।” तो पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनसे शादी कर ली और
उन्हे ४०० दिर्हम महर दिया।
अबू उमर कुर्तुबी
“इस्तीआब” में कहते हैं : उनका
नाम बर्रह था तो पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसे बदल कर उनका नाम जुवैरियह
कर दिया, इस तरह जुवैरियह मोमिनों की माँ और अगले व पिछले सभी लोगों के सरदार पैगंबर
सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पत्नी बन गईं।
जुवैरियह रज़ियल्लाहु अन्हा की बरकतः
जब उनकी शादी
की खबर लोगों के कानों तक पहुँची तो उनके पास जो भी क़ैदी थे उन्हें आज़ाद कर दिए और
कहने लगे किः वे पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के ससुराल के लोग हैं। इस तरह जुवैरियह
रज़ियल्लाहु अन्हा अपनी जाति के लोगों के लिए सबसे बड़ी बरकत साबित हुईं, जिसके बारे
में आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने फरमायाः आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के उनसे शादी
कर लेने के कारण बनी मुस्तलिक़ के सौ घर वाले आज़ाद कर दिए गए, तो मैं उनसे बढ़कर बरकत
वाली (शुभ) कोई महिला नहीं जानती।
उनके अभिलक्षण और महत्वपूर्ण विशेषताएं
जुवैरियह
रज़ियल्लाहु अन्हा सबसे सुंदर महिलाओं में से एक थीं, तथा वह बहुत बुद्धिमती, बहुत
ही परिपक्व समझबूझ और शुद्ध विचार और कामयाब राय की मालिक थीं, वह ज़बरदस्त शिष्टाचार,
लाटिका और कोमल बातचीत के गुण अपने अंदर रखती थीं, वह अपने पवित्र हृदय और शुद्ध आत्मा
के द्वारा जानी जातीं थीं। इसके अलावा, वह बहुत समझदार, अल्लाह से डरनेवाली, पवित्र
आत्मा, धर्म की बातों में फूँक फूँक कर क़दम रखनेवाली थीं, घर्म शास्त्र में बहुत माहिर,
प्रकाशित आत्मा और रोशन दिलो दिमाग़ रखती थीं।
अल्लाह का ज़िक्र करनेवाली और इबादतगुज़ारः
जुवैरियह रज़ियल्लाहु
अन्हा नमाज़ और इबादत में उम्महातुल मोमिनीन (पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पवित्र
पत्नियों) का अनुसरण करने लगीं और पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के शिष्टाचार और
श्लाघनीय गुणों को अपनाने लगीं यहाँ तक कि प्रतिष्ठा और बुज़ुर्गी में उदाहरण बन गईं।
इस तरह जुवैरियह रज़ियल्लाहु अन्हा बहुत इबादत करनेवाली, प्रार्थना करनेवाली, अल्लाह
को बहुत याद करनेवाली और सब्र करनेवाली महिलाओं में से थीं। वह पाबंदी के साथ अल्लाह
सर्वशक्तिमान की स्तुति करनेवाली, उसकी पवित्रता ब्यान करनेवाली और उसको जपने वाली
थीं।
जुवैरियह रज़ियल्लाहु अन्हा और हदीस की रिवायतः
उनसे इब्ने
अब्बास, उबैद बिन सब्बाक़, इब्ने अब्बास के आज़ाद किए हुए गुलाम कुरैब, तथा मुजाहिद,
अबू अय्यूब यह्या बिन मालिक अज़्दी और जाबिर बिन अब्दुल्लाह
ने हदीस रिवायत की है। बक़ी बिन मख्लद की किताब
में उनकी हदीसों की संख्या सात है, जिन में से चार हदीसें “कुतुब सित्तह” (हदीस की छः
सुप्रसिद्ध पुस्तकें) में हैं, सहीह बुखारी में एक हदीस और सहीह मुस्लिम में दो हदीसें
हैं। उनकी हदीसों में रोज़े का विषय शामिल है, जिस में यह उल्लिखित है कि शुक्रवार
(जुमा के दिन) को रोज़े के साथ खास नहीं करना चाहिए, एक हदीस दुआओं के अध्याय में
तस्बीह (अल्लाह की पवित्रता बयान करने) के पुण्य में है, इसी तरह ज़कात के बारे में
भी उनसे एक हदीस कथित है, जिसमें यह है कि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को तोहफा
में वह चीज़ दी जा सकती है जो तोहफा देनेवाले को दान के द्वारा प्राप्त हुई है, इसी
तरह उनसे गुलाम आज़ाद करने के विषय में भी एक हदीस कथित है।
इस प्रकार,
सात हदीसों के द्वारा विश्वासियों की माँ जुवैरियह बिन्त अल-हारिस रज़ियाल्लाहु
अन्हा ने हदीसों की रिवायत की दुनिया में अपने नाम को हमेशा के लिए सुरक्षित कर
दिया, ताकि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की संगत और सारे मुसलमानों की माँ होने
के सम्मान के साथ साथ, उम्मत को नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नतों (हदीसों)
को पहुँचाने का पद भी प्राप्त कर लें।
उनकी हदीसों
में से एक हदीस यह है कि : पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक बार शुक्रवार को जुवैरियह
बिन्त अल-हारिस के पास आए जबकि वह रोज़ा रखी हुई थीं, तो पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि
व सल्लम ने उनसे पूछा : क्या तुम ने कल रोज़ा रखा थाॽ तो उन्हों ने उत्तर दिया : नहीं, तो आप
ने पूछा : क्या तुम कल रोज़ा रखो गी? तो उन्होंने उत्तर
दिया : नहीं, तो पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनसे कहा : तो तुम रोज़ा तोड़
दो।”
यह हदीस अब्दुल्लाह
इब्न अम्र बिन आस से कथित है, और इसकी सनद सही है, लेकिन हाफ़िज़ इब्ने हजर ने इसमें
अन्य हदीसों के विपरीत होने की इल्लत (कमज़ोरी) ब्यान की है, इसे अल्बानी ने उल्लेख
किया है, देखिएः सहीह इब्ने खुज़ैमा, हदीस नंबरः २१६३.
उनका निधन
जुवैरियह रिज़यल्लाहु
अन्हा ने पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के निधन के बाद खुश व खुर्रम जिंदगी गुजारी,
उनकी जिंदगी अमीर मुआविया बिन अबू सुफ़यान रज़ियल्लाहु अन्हुमा की खिलाफत काल तक लंबित रही। रबीउल्ल औवल ५० हिज्री
में उनका निधन हुआ, उनको जन्नतुल बकीअ में दफनाया गया, और मरवान बिन हकम ने उनकी नमाज़े
जनाज़ा पढ़ाई l
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